फटी जेब वाले पापा
बहुत रंगीन थे वे धागे
जिनसे पिता का कुरता बना था
पर परिवार की ख्वाहिशों ने
उन्हें सफेद कर दिया
यूँ ही नहीं उड़े ये रंग
बरसों खड़े रहे वह धूप में
भटकते रहे दोपहरियों में कमाने के लिए
ताकि सब्जियाँ ,चाय पत्ती, चीनी और हमारी
आँतों के लिए गेहूँ खरीदने सकें…
कोई चीज नहीं है दुनिया की
हमने कही और पिता ने नहीं दी …
बहुत जेब हैं उनके सफेद कुरते में
देख रही हूँ बचपन से
हमेशा भरी रहती हैं उपर तक
हाँ सूखते देखे हैं मैंने तालाब ,नदी
बादल भी नहीं रहते सदा साथ नहीं रहते
जल से भरे हुए
उड़ जाते हैं अक्सर हल्की हवा में
पर, कभी नहीं देखी कुरते के बाहर
पिता की खाली जेबें…
बेटियों के कन्यादान के वक्त
लक्ष्मी के मटके से गिरता रहा धन उनकी जेब में
नाजाने कौन सा बैंक आ बैठा है वहां
अपना बम्पर पॉलिसी ऑफर लेकर
हमारी हर जरूरतों में हाजिर है
बस यही उनकी जेब…
जानती हूँ पापा
तुम्हारा कुबेर होना
और जानती हूँ ये भी
कि इस कुरते में एक फटी जेब भी है
जो तुम्हारे लिए है बस
जब भी जूस वाले के पास से गुजरते हो
अपने मन पर नियंत्रण कर बचा लेते हो पाई पाई
फटी जेब में हाथ डाल
ओर दो महीने ज्यादा चला लेते हो पुराने जूते
चार बरस ज्यादा पहन लेते हो घिसी कॉलर वाली शर्ट
यूँ ही बरसों पैदल चलकर
थमा देते हो लगन पर
दामाद को बाईसाइकिल की चाबी
जबकि तुम खुद के लिए नहीं खरीद पाये
एक साइकिल भी…
फटी जेब वाला पापा होना
आसान नहीं है पापा
सुन रहे हो ना मेरे प्यारे पापा
फटी जेब वाला पापा होना
आसान नहीं है पापा…
सुनीता करोथवाल