आज डबल ए न्यूज़ पर आपको दिखाएंगे देश की राजधानी दिल्ली का अनदेखा पहलू । इस पहलू पर शायद समाज की नजर कम ही जाती है और इनकी आवाज कभी उठ नही पाती । दरअसल दिल्ली में खेती पर निर्भर किसानों की हालत आप देखेंगे तो चौक जाएंगे । इन किसानों के घर जाकर देखा तो घर मे गैस सिलेंडर नही और चूल्हे पर रोटी पका रहे थे । इनके सभी बच्चे स्कूल नही जा रहे । इनके घरों में बिजली नही । यहां इस स्थिति के लिए सीधे सरकार को दोष नही दे सकते क्योकि ये लोग खुद यमुना खादर में जाकर बसे है वहा सरकार कैसे सुविधाएं दें । लेकिन सवाल ये है कि ये लोग सब्जियों की खेती करते है उससे होने वाली कमाई से ये अपने बच्चे नही पढा पा रहे , सिलेंडर नही ले पा रहे हैं । हमारा मतलब ये साबित करना है कि खेती में इतनी बचत नही कि वो किसी कालोनी में एक छोटा सा मकान ले सके , गैस सिलेंडर ले सके , बच्चे स्कूल में पढ़ा सके । जमीन के कागजी किसान और मालिक से ये लोग ठेके पर एक रकम देकर खेत लेते है और उसपर सब्जी लगाते है उसको तैयार करके बेचते है और जीवन का गुजारा करते है । ये लोग दिल्ली में दूसरे दो राज्यो से आकर मेनहत कर रहे हैं । दरअसल असली किसान खेती करने वाला जमीनी किसान है जो ये हैं। उदाहरण और एक शोध सेम्पल के लिए डबल ए न्यूज़ ने बुराड़ी यमुना पुश्ते के पास बसे इन घरों की विजिट की बातचीत की । इन लोगो से बातचीत और इनकी बाइट्स ऑन कैमरा ली ।
यहां 15 से 20 घर हैं इन्हें मजदूरी कहे या किसानी करने वाले . जब ये फसल उगा रहे हैं उसे पाल रहे है उसे तैयार करके बेच रहे है इसलिए हम तो इन्हें असली किसान ही कहेंगे । जो किसान स्कॉर्पियो जैसी गाड़ियों में घूमते है और खुद खेती नही करते लेकिन पुश्तैनी जमीन के कारण खुद को किसान कहते है और किसानों की जो भी संस्थाए या एशोषियेशन बनती है उनके मेम्बर अधिकतर वही किसान होते है जो कई कई लाख की गाड़ियों में चलते है और खेती नही करते । जो ये असली किसान हैं उन्हें तो वक्त ही नही होता और ये जाए भी तो इनकी इंट्री ही सम्भव नही । किसानों की समितियों में जमीन के मुआवज़े कैसे बढ़े जैसे मुद्दे उठते है वे भी जरूरी है लेकिन खाद सब्सिडी , खेतो में बिजली सब्सिडी जैसे मुद्दे अगली श्रेणी में नही होते । बुराड़ी में बसे इन घरों में पाया कि ये आज भी चूल्हे पर खाना पकाते हैं हो सकता है इनके पास ईंधन पर्याप्त है खेतो में इसलिए ध्यान न दिया हो पर सर्दी और बारिस में सुखे ईंधन की व्यवस्था कितनी ज्यादा मुश्किल होती है शायद वो ये ही जान सकते है या कोई इसको भुगत रहा गरीब ग्रामीण । इनके बच्चे स्कूल नही जाते कुछ बच्चे जिनके रिश्तेदारों के पास रहते है वे जरूर सरकारी स्कूल जा रहे पर अधिकतर बच्चे यही सब्जी की खेती में लगे है । खैर सरकारी स्कूल में पढ़ाई फ्री होती है पर इन्हें इतनी समझ तक नही कि पढाई बच्चों के लिए कितनी जरूरी है आने वाली इन पीढ़ियों को पढाई की कीमत पता चले इसके लिए इनकी पढाई जरूरी है । इनकी खेती दस महीने होती है दो महीने यमुना में पानी बढ़ जाता है फसल का हिस्सा पानी मे डूब जाता है और बाहर किनारे पर सरकारी इंतजाम की तरफ आशा लगाए होते है इन्हें सरकारी पूरी सब्जी मिल जाये वही बहुत कुछ होता है । यहां दूसरा पहलू जिंदगी का मौत से सामना भी है । यहां खेतो में जहरीले सांप तो आम बात है ही साथ मे यही बगल में तेंदुआ तक कई बार आ चुका है और एक बार तो तेंदुआ पिंजरा लगाकर वन विभाग ने पकड़ा भी । इन लोगो के पास आकर नागार्जुन और निराला जी की याद अनायाश ही आ जाती है ..
” ओ मजदूर और मजदूर तूं ही सब चीजो का करता तू ही सब चीजो से दूर ”
महलो को बनाता है और झोपड़ी में रहता है .
कोदई खाता है गेंहूँ खिलाता है .
कजल पुता खानों में काम करता है और
चमाचम विमानों को उडाता है
— मै उस मजदूर की व्यथा हूँ
दिल्ली से अनिल अत्री और नसीम अहमद की रिपोर्ट. साथ ही इस तरह की खबरों के लिए आप यूट्यूब पर AA News को Subscribe जरुर करें नीचे इस विडियो को पूरा देखें
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