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Delhi
रिपोर्ट : अनिल कुमार अत्री
दिल्ली के गांव में भी शहर बनने की परियोजना अधर में लटकी हुई है । दरअसल लैंड पूलिंग पॉलिसी में किसान रुचि नहीं ले रहे हैं। लैंड पूलिंग पॉलिसी काफी पेचीदा बना दी गई है और कई चीजें इसमें क्लियर नहीं है जिससे किसान रुचि नहीं ले रहे हैं। किसानों द्वारा कम रुचि लिए जाने के कारण अधिकतर जॉन का क्राइटेरिया पूरा नहीं हो रहा है तो डीडीए वहां पर है फ्लैट और दूसरी सुविधाएं मुहैया कराकर सोसायटी नहीं बना पा रही है।
लैंड पूलिंग पॉलिसी पर काम करने वाले एक कुछ किसानों ने सरकार के साथ पत्राचार शुरू किया है और केंद्रीय मंत्रियों से मिलने का समय मांग रहे हैं ताकि किसानों की समस्याओं को समझ सके और लैंड पूलिंग पॉलिसी को किसानों के अनुसार बनाया जा सके। कई किसानों की कुछ आपत्तियां हैं जिनका निराकरण आवश्यक है ।
किसानों की तरफ से कहा गया है कि वर्ष 2013 के गजट में जो जमीन का बंटवारा किया गया था वह प्रतिशत के हिसाब से सही था परंतु 2013 में EDC के रूप में दो करोड रुपए प्रति एकड़ लगाया गया जो किसानों को देना होगा। किसान दो करोड़ रुपये प्रति एकड़ देने में सक्षम नहीं है इसके लिए उन्हें अपनी जमीन किसी बिल्डर आदि को बेचनी पड़ेगी। इसलिए किसान कदम आगे बढ़ाने से डर रहे हैं क्योंकि EDC अब कितना होगा यह सरकार ने फिलहाल साफ नहीं किया है । अब किसानों को डर है कि 2013 के हिसाब से ही यदि दो करोड रुपए प्रति एकड़ देने पड़ सकते है ।
दूसरे सेक्टर की 70% जमीन पुल होनी चाहिए जो काम मुश्किल हो गया है साथ ही यदि 70% हो भी गई तो क्या उस 30% जमीन का क्या इंतजाम होगा वह भी पूरी तरह से साफ नहीं है। साथ ही किसानों का कहना है कि FAR 400 के स्थान पर 200 कर दिया गया जो नेट लेंड पर लागू है। साथ ही जो कंसोटियम बनाने की बात रखी गई है उससे भी किसान पूरी तरह सहमत नहीं है। किसान चाहते हैं कि बीच में कंसोटियम रूपी दलाल को हटाकर किसान खुद डीडीए से संपर्क करें डीडीए उनकी जमीन ले और डीडीए से ही संपर्क हो न की बीच में बनाई गई किसी भी तरह के कंसोटियम से।
इस पर किसानों का कहना है कि जब तक EDC तय नहीं तब तक लैंड पूलिंग किसान कैसे करें। यदि एक सेक्टर कहीं डेवलप होता है तो उसकी कनेक्टिविटी कैसे होगी। पांच एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को कंसोटियम बिल्डअप एरिया कितना देगा यह भी किसानों की समझ में नहीं आया है। गजट में कुछ समय सीमा तय नहीं की गई है।
फिलहाल लैंड पूलिंग पॉलिसी में किसान कम रुचि दिखा रहे हैं और कहीं भी किसी भी सेक्टर की जमीन पूरी पुल होती दिखाई मुश्किल हो रही है इसलिए जरूरत है डीडीए भी इन सभी आने वाली अड़चनों का समाधान करके दिल्ली को सलाम बनने से रोकें।वरना दिल्ली में हर रोज कृषि की जमीन पर बेढंगे तरीके से कालोनिया काटी जा रही है बसाई जा रही है। ये कालोनियां बसाना पूरी तरह से गैर कानूनी और अवैध है लेकिन जनप्रतिनिधियों और रेवेन्यू के अधिकारियों, पुलिस आदि सभी की मिलीभगत से यह खेल दिल्ली में खुलेआम जारी है ।
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अब ऐसी बसाई कालोनियों में आप पार्क आदि किसी सार्वजनिक जगह की बात तो छोड़िए ट्रांसफार्मर तक लगाने की जगह नहीं होती। साथ ही खेत में कॉलोनी काटकर बेचने वाला शख्स गलियां भी बिल्कुल पतली छोड़ता है जिनमें दमकल आदि की गाड़ियां भी नहीं आ जा सकती । जरूरत है इस तरह से दिल्ली को बेढंग तरीके से बसने से पहले ही सरकार लैंड पूलिंग पॉलिसी की समस्याएं दूर करके लोगों को बेहतरीन घर उपलब्ध कराए और प्रधानमंत्री का सबको आवास योजना को सफल बनाने में सहयोग करें।