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#Bawana_Outer_Delhi
Report : Anil Kumar Attri & Naseem Ahmed
दिल्ली देहात के सबसे सुंदर व हरियाली भरे “गंगा टोली मन्दिर” का इतिहास आज हम आपके सामने लाने की कोशिश करेंगे। दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल एरिया सेक्टर-4 में बना गंगा टोली मंदिर बवाना ही नहीं बल्कि बवाना के आसपास के 20 से ज्यादा गांव की पूजा का स्थल है। इन गांव से निकलकर जो लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में गए हैं वहां से भी वे लोग आकर इस मंदिर में पूजा करते हैं। मंदिर का नाम गंगा टोली कैसे पड़ा ? क्या है इसका प्राचीन इतिहास ? उसके बारे में आज हम चर्चा करेंगे ।
यहां के पुजारियों, गांव के लोगों और मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाले लोगों से बातचीत कर इसका इतिहास जानने की कोशिश करेंगे। गंगा टोली मंदिर की स्थापना सन 1854 ईसवीं में हुई थी। 1990 के बाद यहां गांव के लोगों ने अपनी श्रद्धा की जगह पर आलीशान मंदिर बनाया जिसमें अभी भी काम लगातार जारी है। मंदिर का स्ट्रक्चर देखकर सभी इस आलीशान मंदिर की दिल से तारीफ करते हैं।
मंदिर की स्थापना सन 1854 ईसवीं में गंगा महाराज जी द्वारा की गई थी। पहले यहां पर काफी सुनसान जंगल था और जंगली जानवर बड़ी संख्या में रहते थे। गांव वासी एक बार जंगल में गाय चराते हुए आए तो उन्होंने देखा कि गांव के जंगल में कुटिया बनाकर एक साधु रह रहे हैं और वहां तपस्या करते हैं। गांव के लोगों द्वारा बताई गई किदवंती और एक छोटी पुस्तक की भी मानें तो वह साधु गंगा महाराज जी थे। गंगा महाराज जी शुरुआत में अंग्रेजी सेना में अधिकारी थे । अंग्रेजी शासन का दुराचार और दमन देखकर वे इतने व्यथित हुए कि उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने नौकरी ही नहीं छोड़ी बल्कि अपना घर परिवार सब छोड़कर इस वन में आ कर तपस्या करने लगे। इसलिए महाराज जी के परिवार की किसी को जानकारी नहीं है, क्योंकि साधु तपस्वी पूरे संसार को अपना परिवार मानते हैं। महाराज जुड़े जी से जुड़ी कई किदवंतियाँ हैं, चाहे स्वाद के लिए जिह्वा को कंट्रोल करने की किदवंती हो या समाधि में बाबा जब साधना में लीन थे तो लोगों ने देखा कि बाबा का बाबा ब्रह्मलीन हो गए देहावसान हो गया है । सुबह पूरा गांव पहुंचा तो बाबा आराम से बैठे पूजा कर रहे थे तो सभी लोग हैरान थे तो बाबा ने बताया कि वह उनकी साधना की स्थिति थी सिर्फ उनका शरीर बचता है और वह बाकी प्रभु चरणों में सब कुछ समर्पित हो जाता है।
गंगा महाराज जी के पास साधु सन्यासी आने लगे और सभी उस टोली में रहते थे ( गांव में लोगों के छोटे समूह को टोली कहा जाता है) और यहां प्रभु की पूजा करते थे।
गंगा महाराज की इस टोली के कारण गांव वासियों ने उस मंदिर को गंगा टोली मंदिर बोलना शुरू कर दिया और आज यह गंगा टोली मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध हो रहा है । शुरुआत में यहां पर बाबा का एक छोटा सा शिवालय जिसे मंढी कहते है, एक बाबा का धूना जिसमें 24 घंटे अग्नि जलती है यह अग्नि उस जमाने से जलती आ रही है क्योंकि साधुओं का धुना लगातार जलता है कभी खंडित नहीं होता। पास में एक छोटा सा तालाब एक कुई ( छोटे कुएं को कूई कहा जाता है) और एक छोटा सा कमरा बनाया गया था। शुरुआत में यहां ये मंदिर एक मंढी के रूप में था मंढी एक बिल्कुल छोटा सा कमरा होता है जिसमें हवा बारिश आदि से बचाने के लिए एक ज्योति रखी जाती है।
पूरा गांव यहां पूजा करने लगा बवाना के आसपास के गांव भी धीरे-धीरे पूजा करने लगे पूरे गांव में जब भी कोई शुभ कार्य होता है तो वह शख्स सबसे पहले यही गंगा टोली मंदिर में पूजा करने के लिए जरूर आता है। इस मंदिर में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह और बवाना के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार भी लगातार पूजा करते आए हैं। इस मंदिर के भव्य बनाने का श्रेय बवाना के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार को जाता है। जब यहां इस जंगल में बवाना इंडस्ट्रियल एरिया बसाया गया उस समय यहां खेत व झाड़ जंगल थे और लोग खेती करते थे। उस वक्त यहां के विधायक सुरेंद्र कुमार थे । इन्होंने दिन-रात यहां प्रयास किया। यहां कुछ जमीन ग्रामसभा की थी तो कुछ डीडीए द्वारा एक्वायर कर ली गई थी। सुरेंद्र कुमार के प्रयासों से यहां करीब 5 एकड़ जमीन मंदिर को दिलाई गई । इस मंदिर को 5 एकड़ जमीन देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का आभार यहां के स्थानीय निवासी और पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार करते हैं।
इसके अंदर तीन भव्य मंदिर बनाए गए हैं साथ ही भगवान परशुराम का की प्रतिमा, गीता उपदेश, जटा गंगा छोड़ते हुए शिव भोले बाबा की प्रतिमाएं और भी बड़ी संख्या में प्रतिमाएं बनाई गई है जिन्हें देखने के लिए लोग यहां पहुंचते हैं।
जोहड़ और कूई का भी पुनरुद्धार किया गया है । सुबह शाम आरती होती है और मंदिर के पुजारी यहां पूजा करते हैं । जब हम इस मंदिर में पहुंचे तो यहां विवेकानंद पुरी जी इस मंदिर की देखरेख करते हुए मिले।
लोगों का विश्वास है कि उनकी सब मन्नते यहां पूरी हो जाती है। यहां के लोग मानते हैं कि सुरेंद्र कुमार ने इस मंदिर की सेवा की तो वह कई बार विधायक बने। इस बारे में जब सुरेंद्र कुमार से पूछा गया तो उनका भी यही कहना है कि यह सब बाबा की कृपा है ।
पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार खुद इस मंदिर में हर रोज सुबह आकर सफाई करते हैं जिसमें में झाड़ू लगाना और पोछा लगाना आदि शामिल है। सुरेंद्र कुमार घास की कटिंग खुद करते हैं। सफाई आदि के लिए कोई कर्मचारी नही रखा है सब सेवा भाव से होता है ।
इस मंदिर को भव्य बनाने के लिए सुरेंद्र कुमार ने 1990 के दशक में खुद घर घर से चंदा लेना शुरू किया था ताकि जो भी चंदा दे और मंदिर में अपना हिस्सा समझेगा और आस्था बढ़ेगी। इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में किसी भी दान कर्ता का पत्थर नहीं लगाया गया है नाम नहीं लिखा गया है । दान कर्ताओं का पत्थर लगाना इस मंदिर की परंपरा नहीं है और ना ही लिखित में कोई पर्ची काटी जाती है ।
फिलहाल यह मंदिर बवाना इंडस्ट्रियल एरिया के बीच में है या बड़े-बड़े उद्योगपति रहते हैं उद्योगपति इसमें कमरे बनाने के लिए तैयार है लेकिन मंदिर कमेटी का कहना है कि उन्हें जितनी आवश्यकता होगी उतना ही काम करवाएंगे इसलिए इस तरह के काम की अनुमति नहीं दी गई है । यहां निरंजनी अखाड़े के महंत और फिर उनके शिष्यों के माध्यम से परंपरा चलती आ रही है जो मंदिर की देखरेख करते हैं और पूजा करते हैं । मंदिर से जुड़ी सभी बातें विस्तार से बताना काफी बड़ा होगा वीडियो लंबा हो जाएगा इसलिए हम आपको दूसरे पार्ट में यहां के लोगों के द्वारा बताई गई जानकारी साझा करेंगे जिससे आप ज्यादा जानकारी ले सकें । फिलहाल इस तरह की आस्था बेहद ही सराहनीय है। जरूरत है यह आस्था नई पीढ़ी में भी लगातार बनी रहे।
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नोट :- गांव के सभी लोगों से मिलना संभव नहीं है इसलिए इसे हम इस गांव के सभी लोगों की राय हम नहीं कह रहे हैं लेकिन हमने मंदिर से जुड़े कुछ लोगों की राय ली है इसलिए इसमें यदि कोई न्यूनता या अधिकता है तो उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। हमारा मकसद मंदिर के इतिहास पर प्रकाश डालना है किसी एक राजनीति धर्म आदि से कोई संबंध नहीं है। इसलिए हमने जो प्रयास किया है उसकी ही सराहना हो और इसको अधिक से अधिक शेयर करें— अनिल कुमार अत्री।
धन्यवाद ।