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नई दिल्ली
रिपोर्ट : अनिल अत्तरी ।
वक्त के साथ-साथ त्योहारों के मनाने के तरीके भी बदल गए हैं । लेकिन लोग फिर भी कोशिश करते हैं कि वह परंपरा बरकरार रहे । होली के अवसर पर बड़ी बड़ी घास फूस की होली भले ही शहरों में संभव ना हो । लेकिन लोग उसका छोटा प्रतिरूप बनाकर होली की पूजा जरूर करते है । चाहे वे किसी शहर, गांव या कालोनी में ही क्यों न रहते हो । लेकिन दिल्ली में तो ऐसा जरूर होता है ।
इस त्योहार की पूजा के लिए दिल्ली की सड़कों पर आजकल गोबर के उपलों की माला जगह जगह बिकती हुई दिखाई दे रही है । दरअसल इन गोबर के उपलों की माला को हर शहर और गाँवों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है । कहीं लोग इन्हें चांद सितारे, तो कहीं बुर्कले के माला, तो कहीं अपनी अपनी संस्कृति के अनुरूप दूसरे नाम से जानते हैं ।मान्यता है कि जब होलिका दहन किया जाने लगा और पहलाद को मारने के लिए होलिका की गोद मे अग्नि के अंदर बैठाया गया । अग्नि देने से पहले ऋषि मुनियों ने अपनी गले की मालाएं उतारकर होलिका में फेंकी थी कि यदि प्रह्लाद भक्त की मौत यदि इस होलिका दहन में हो जाती है तो वह भी प्रभु स्मरण छोड़ देंगे ।
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जब होलिका दहन हुआ तो प्रह्लाद भक्त उसमें जीवित बच गया और उसकी बुआ होलिका उस अग्नि में जलकर मर गयी । उसके बाद संतों ने फिर अपनी प्रभु मालाओं से भक्ति को शुरू कर दिया था । जिससे उनकी भक्ति और अटूट प्रेम भगवान के प्रति बढ़ गई था । उसी पौराणिक मान्यता के अनुसार आजकल हर घर, गांव और शहर में होली की पूजा की जाती है कि इस दिन बुराई का अंत हुआ था ।
इसी वजह से गांवों लोगों द्वारा हर घर से गाय के गोबर की मालाएं बनाकर होलिका दहन पर डालते है । जिससे वहां पर ईंधन भी इक्क्ठा हो सके । आज के शहरीकरण के दौर में गांवों से गायों ओर अन्य पशुओं को रखना संभव नही है ।
इसलिए अब यह मालाएं महानगरों में सड़कों किनारे बिकती हुई नजर आ रही है । कुछ लोग गोबर कि यह माला बनाकर ₹10 माला के हिसाब से सड़क किनारे बेच रहे है । मंगोलपुरी का बुद्ध विहार रोड कंझावला रोड पर बड़ी तादाद में लोग हर साल होली के अवसर पर इस तरह की गोबर कि अपनों की मालाएं बना कर बेचते हैं । और लोग अपनी पूजा के लिए यहां से खरीदते भी है । क्योंकि लोगों के पास में मालाएं बनाने के लिए गोबर नही है । और यदि आस पड़ोस में कहीं दूर दराज में गोबर मिल भी जाए तो उन्हें गोबर से माला बनाने के लिए जगह भी नहीं मिलती । साथ ही एक बड़ी विडंबना भी यह है कि आजकल लोगों के पास समय भी नहीं है तो इसके लिए लोग रेडीमेड बनाई गई इस तरह की माला खरीद रहे हैं । गरीब लोग अपना रोजगार इस तरह से तलाशते हैं लेकिन इसके पीछे कहीं ना कहीं एक संस्कृति हमारे पास जरूर जिंदा है जरूरत है हम अपनी मान्यताओं को किसी न किसी तरह से सहेज कर रखें