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NEW DELHI
मुक्ति कारवां के कार्यकर्ताओं ने शपथ पत्र पर करवाया हस्ताक्षर।दलगत राजनीति से ऊपर उठकर प्रत्याशियों ने बच्चों की मांगों को पूरा करने का दिया आश्वासन।
भारत की राजधानी दिल्ली में पिछले 10 दिनों से विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर हैं। ऐसे चुनावी मौसम में बच्चे भी कहां पीछे रहने वाले? बाल दासता, शोषण और हिंसा के शिकार रह चुके बच्चों के साथ स्लम और स्कूली बच्चों ने सुरक्षित और बाल मित्र दिल्ली बनाने के सिलसिले में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के सामने अपना मांगपत्र रखा।
गौरतलब है कि ये मांगें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) बैनरतले बच्चों की ओर से पेश की गई थीं। अपनी इस मांगपत्र को उन्होंने तब बनाया, जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई थी।
चुनाव अभियान के दौरान केएससीएफ द्वारा संचालित दिल्ली के चार बाल मित्र मंडल (बीएमएम) की बाल पंचायतों, चाणक्यपुरी स्थित संजय कैम्प, रंगपुरी स्थित इजराइल कैम्प, बसंतकुंज स्थित इंदर कैंप, ओखला फेज-1 स्थित इंद्रा कल्याण विहार के बच्चों ने बाल केंद्रित मांगों की एक सूची बनाई और उसे चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के सामने पेश किया।
बीएमएम, केएससीएफ की एक ऐसी पहल है, जिसके तहत दिल्ली में शहरी क्षेत्र के 6-14 वर्ष के सभी बच्चे स्कूल जाते हों। समुदाय में एक भी बच्चा मजदूरी नहीं करता हो। समुदाय में चुनी हुई बाल पंचायत हो और जिसका समुदाय की पंचायत से तालमेल हो। समुदाय में सभी बड़ों का बच्चों के प्रति मित्रवत् व्यवहार हो। बच्चों को उनके अधिकार मिलते हों और साथ ही उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती हों।
बच्चों के इन मांगों को मुक्ति कारवां द्वारा दिल्ली के सभी 70 निर्वाचन क्षेत्रों में ले जाया गया। मुक्ति कारवां का संचालन उन युवाओं द्वारा किया जाता है जो कभी बाल मजदूर थे और जिनको केएससीएफ की सहयोगी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा मुक्त कराया गया था। यह एक सचल दस्ता है, जो गांव-गांव में घूमकर बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), बाल मजदूरी और यौन शोषण जैसी बुराइयों के खिलाफ जन जागरुकता फैलाने का काम करता है। दिल्ली में मुक्ति कारवां ने बच्चों की समस्याओं के प्रति मतदाताओं को जागरूक और संवेदनशील किया। कारवां का यह नारा-‘’बच्चों की जो बात करेगा, वह दिल्ली पर राज करेगा’’ दिल्ली की गली-गली, घर-घर में गूंज रहा है।
मुक्ति कारवां के कार्यकर्ताओं ने सभी दलों के प्रत्याशियों से मुलाकात की और ज्यादातर ने उन्हें भरोसा दिया कि अगर उनका चयन दिल्ली विधानसभा के लिए होता है, तो वे बच्चों की मांगों को पूरा करने की दिशा में काम करेंगे। अभियान के दौरान सभी 70 निर्वाचन क्षेत्रों में 220 से अधिक प्रत्याशियों के पास मुक्ति कारवां पहुंचा और गुरुवार तक 100 से अधिक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाए गए। प्रत्याशियों ने मुख्य रूप से यह शपथ लिया कि वे अपने क्षेत्र को बलात्कारमुक्त और सभी बच्चों के लिए सुरक्षित बनाएंगे। 12वीं कक्षा तक की शिक्षा को सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य करेंगे। वे यह भी सुनिश्चित करने का काम करेंगे कि दिल्ली, विशेषकर उनके विधानसभा क्षेत्र में एक भी बच्चे का दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) नहीं होगा और बाल मित्र दिल्ली बनाने हेतु वे काम करेंगे।
केएससीएफ के प्रवक्ता श्री राकेश सेंगर ने कहा, “बच्चे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं। केएससीएफ चाहता है कि बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए बाल केंद्रित नीतियां बनाई जाएं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हर बच्चा स्वतंत्र, सुरक्षित और शिक्षित हो और दिल्ली बाल मित्र दिल्ली बने।‘’
चुनाव अभियान के एक हिस्से के रूप में स्लम के बच्चों ने अपनी मांगों को समुदायों में घर-घर जाकर, अपने माता-पिता, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ साझा भी किया और उनसे आह्वान किया कि वे केवल उन उम्मीदवारों को वोट दें जो उनकी मांगों को पूरा करने का भरोसा देते हों।
बीएमएम इंद्रा कल्याण विहार में बाल पंचायत की सदस्य नुजहत ने कहा, ‘’जब हम स्कूल जाते हैं, तो हमें छेड़ा जाता है। इससे हमारे मन में डर बैठ गया है। हमें इस डर से मुक्ति चाहिए।”
प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ लोकप्रिय उम्मीदवारों में सुश्री आतिशी सिंह, श्री दिलीप पांडे, श्री राजेंद्र पाल गौतम और आम आदमी पार्टी के अन्य सदस्य, भारतीय जनता पार्टी के श्री लक्ष्मण रावत, श्री धर्म बीर सिंह, श्री विजय पंडित और कांग्रेस पार्टी से श्री गुरचरण सिंह, श्री मनदीप सिंह और श्री यदुराज चौधरी आदि के नाम शामिल हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में दिल्ली में बच्चों के खिलाफ अपराध के 26,764 मामले दर्ज किए गए। जिनमें से बाल मजदूरी के 387, बाल यौन शोषण के 2,781, बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के 1,156 और गुमशुदा बच्चों के 21,531 मामले थे।