डूबते लोगो की जान बचाते हैं ये गोताखोर
बिना ड्यूटी के दौरान फ्री में जाकर बचाते है जान
सुसाइट के इरादे या दुर्घटना से नहर में गिरने वाले इस मानसून में भी कई बचाये
आज हम दिखाएंगे इन्ही गोताखोरों की दास्तां
AA News
Badali Delhi
Report : Anil Kumar Attri
दिल्ली में लोगों की जान बचाने वाले गोताखोर मानसून में तीन महीने ही होते हैं तैनात। उसके बाद हटा दिया जाता है उन्हें उस काम से और करते हैं ये लोग अलग-अलग इलाकों में मजदूरी या दूसरे काम।
एक मानसून के सीजन में कई लोगों की जान बचाते हैं। डूबते हुए लोगों की जान बचाते हैं जो सुसाइड करने के इरादे से नहर में कूदते हैं या दुर्घटना से नहर या यमुना नदी में गिर जाते हैं। अकेले बादली नहर के पॉइंट पर इस मानसून में 6 लोगों की जानें गोताखोरों ने बचाई है। अगले 15 दिन बाद इन्हें नौकरी से हटा दिया जाएगा और अगले मानसून में फिर से नौकरी पर बुलाया जाएगा। नौकरी से हटाने के बाद बाद भी ये बिना नौकरी के लोगों की फ्री में मदद करते हैं। दिल्ली में या आसपास से इन्हें किसी के डूबने की सूचना मिलती है तो तुरंत मौके पर पहुंचते हैं यदि इंसान जीवित हालत में बचने की कोशिश में हो तो इसे जिंदा बचा लेते हैं और यदि थोड़ा समय लग जाता है तो उसके शव को तलाश कर परिजनों को देते हैं। पुलिस और दमकल विभाग के कर्मियों को भी इन लोगों से बड़ी मदद मिलती है। सरकार ने 3 महीने ही नौकरी देती है बाकी के महीनों में क्या कोई सुसाइड करने के लिए नहर या नदी पर नहीं जाता ?
क्या कोई गाड़ी दुर्घटना होकर नदी नहर में नहीं गिरती ?
क्या कोई इंसान गलती से नहर में नहीं गिरता ?
या नहाते वक्त डूबने की घटना उन दिनों में नहीं होती ?
घटनाएं तो होती है लेकिन बचाने वाले उन दिनों में गोताखोर नहीं होते
आज हम आपको दिखाने जा रहे हैं दिल्ली में लोगों की जान बचाने वाले फरिश्तों की दास्तां। दिल्ली में बवाना नहर और यमुना पर गोताखोर तैनात किए गए हैं। ये गोताखोर उन लोगों की जान बचाते हैं जो दुर्घटना के कारण नहर या यमुना नदी में गिर जाते हैं या फिर खुदकुशी के इरादे से भी बहुत लोग बवाना नहर में कूद जाते हैं।
यदि पिछले 4 महीने की बात की जाए तो बवाना नहर के गोताखोरों की टीम ने छह डूबते हुए लोगों को जिंदा बचाया जिनमे लडकिया व पुरुष दोनों हैं । दरअसल बवाना नहर के पॉइंट पर बादली से हरेली तक इस एरिया में 6 गोताखोर तैनात किए गए हैं। ये 6 गोताखोर 24 घंटे इस नहर पर अलर्ट रहते हैं । जब भी कोई दुर्घटना की कॉल मिलती है या इन्हें कोई सूचना देता है तो यह तुरंत भाग कर उसकी जान बचाते हैं। लाइफ जैकेट और एक मोटर बोट इनके साथ होती है । किस तरह इन्होंने पिछले दिनो लोगों की जान बचाई है वह यह खुद बताएंगे लेकिन उससे पहले इनकी दास्तां जान लीजिए।
ये सभी पानी में छलांग लगाते हैं, गोता लगाते हैं। कभी जीवित इंसान को बचाते हैं तो कभी डेडबॉडी को निकालते हैं। ये एक ठेकेदार के तहत काम करते हैं इन्हें सरकार की तरफ से सरकारी नौकरी नहीं दी जाती है। फिलहाल ये स्थाई नौकरी की मांग भी नहीं कर रहे क्योंकि इन्हें साल में मानसून के दिनों में 3 महीने ही नौकरी पर रखा जाता है कभी छठ पूजा तक इनकी नौकरी का टाइम कुछ दिन बढ़ा दिया जाता है। बाकी के महीने ये बेरोजगार रहते हैं । सैलरी इन्हें इन्ही तीन या चार महीनों की दी जाती है जिन तीन से चार महीनों में ये नहर पर ड्यूटी देते हैं। उसके बाद कोई गोताखोर मजदूरी करने जाता है तो कोई रेहड़ी पटरी लगाने को मजबूर होता है । इनका कहना है कि इनकी मांग सिर्फ इतनी है कि इन्हें पूरे वर्ष नौकरी दी जाए।
विडंबना यह है कि दिल्ली सरकार करोड़ों रुपए की सब्सिडी हर महीने लोगों की दे रही है और गोताखोरों की संख्या दिल्ली में मुश्किल से 50 के आसपास है । लोगों की जान बचाने वाले इन 50 लोगों को पूरे साल नौकरी पर नहीं रखा जाता। सवाल ये खड़ा होता है कि क्या मानसून के बाद लोग पानी में नहीं डूबता ?
क्या मानसून के बाद कोई नहर में खुदकुशी के इरादे से नहीं कूदता ?
क्या मानसून के बाद एक्सीडेंट के बाद कोई गाड़ी या इंसान इस नहर में नहीं गिरता ?
दरअसल यह सब पूरे साल चलता रहता है लेकिन मानसून के सीजन के बाद यह गोताखोर नहीं होते। लोगों की डूबकर मौत हो जाती है उन्हें बचाने वाला कोई नहीं होता क्योंकि मौके पर मौजूद यदि भीड़ होती भी है तो सभी को नहर की गहराई की जानकारी नहीं होती न ही उन्हें तैरना आता। यदि किसी को तैरना भी आता है तो डूबते हुए इंसान को कैसे बचाएं और डूबता हुआ इंसान यदि बचाने वाले को साथ लेकर डुबोने की कोशिश करें तो कैसे खुद को बचाए ? यह सब अनुभव आम इंसान को नहीं होता । पुलिस और फायर कर्मी पहुंचे तब तक इंसान की मौत हो चुकी होती है । जरूरत है इस तरह के डूबने वाले पर या सुसाइड पॉइंट पर 24 घंटे गोताखोरों की तैनाती हो या अनुभवी दमकल कर्मियों को इस नहर पर अलर्ट रखा जाए।
साथ ही यमुना के भी कुछ पॉइंट है जहां पर अक्सर लोग कूदकर खुदकुशी कर लेते हैं या नहाने के दौरान डूब जाते हैं वहां पर भी इस तरह के गोताखोर या फायर कर्मियों को तैनात किया जाए। सरकार इन 50 लोगों का खर्च नहीं उठा रही है और दिल्ली के लोगों की जिंदगी जा रही है। इन 50 लोगों का खर्च 3 महीने का तो सरकार उठा रही है मात्र 8 महीने का ही इनकी नौकरी का खर्च उठाना होगा जिससे 24 घंटे यहां इस तरह की मुस्तैदी हो जाए।
फिलहाल दूसरों की जिंदगी बचाने वाले ये गोताखोर पूरे साल के लिए रोजगार मांग रहे हैं कोई अलग से कोई सुविधा नहीं मांग रही हैं । खास बात यह है कि जब 3 महीने की नौकरी के बाद भी इन्हें पता चलता है कि कोई इंसान नहर में गिर गया तो ये तुरंत उसकी जान बचाने के लिए दौड़ते हैं और कई बार इन्होंने जान बचाई भी है। उस वक्त इन्हें कोई नौकरी नहीं होती न ही मेहनत मजदूरी मिलती है बावजूद उसके यह नहर में कूदकर लोगों की जान बचाते हैं और एक इंसानियत का परिचय देते हैं।
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इनका कहना है कि बिना ड्यूटी के दौरान भी यदि कोई इस तरह का पता चलता है तो उसकी जान बचाने के लिए अपना काम छोड़कर 24 घंटे तत्पर रहते हैं । अब देखने वाली बात होगी कि सरकार इनकी सुध कब लेती है ।
*दिल्ली के गोताखोरों की जिंदगी | लोगों की जान बचाने वाले फरिस्ते #Gotakhor #The_diver. खुदकुशी या दुर्घटना से डूबते इंसानों को बचाते है। साल में मात्र 3 से 4 महीने मिलती है नौकरी। AA News के FB पेज को Like व Youtube पर Subscribe करें. लिंक में गोताखोरो से इनकी व्यथा सुनिए*
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