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#Bawana_Indestrial_Area_Delhi
दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में आज हजारों फैक्ट्रियां बंद करके सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले हजारों फैक्ट्री मालिकों के साथ साथ मजदूरों ने भी सड़क पर मार्च निकाला और DSIIDC ऑफिस तक हजारों की भीड़ जब डीएसआईआईडीसी (DSIIDC) ऑफिस पहुंची तो अधिकारी तो ऑफिस से चले गए सिर्फ कुछ सिक्योरिटी गार्ड ही कार्यालय पर मिले। यहां कार्यालय के आगे हजारों उद्यमियों ने कई घंटों तक नारेबाजी की। दरअसल बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में पिछले कई दिनों से सीलिंग की कार्रवाई जारी है जिससे कारोबारियों के कारोबार ठप हो रहे हैं।
कारोबारियों का आरोप है कि पोलयूशन के नाम पर फैक्ट्रियों को बेवजह सील कर दिया जाता है। इनका कहना है कि जिन फैक्ट्रियों के आगे मात्र कुछ किलोग्राम कूड़ा भी मिला चाहे वह कहीं दूसरी जगह का कूड़ा हो जिस फैक्ट्री के पास वह कूड़ा मिला उसी फैक्ट्री को सील कर दिया गया जो न्याय संगत नहीं है। इसी बात का विरोध करते हुए इन लोगों ने मार्च निकाला।
दो दिन पहले 10 Dec को पोलयूशन के लिए बनाई गई कमेटी के अध्यक्ष खुद भूरेलाल यहां आए थे और अपनी समस्या उद्यमियों ने बताई थी जिसके बाद कुछ फैक्ट्रियों को 50-50 हजार जुर्माना लगाकर दोबारा डीसील करने का आदेश दे दिया गया था लेकिन एक दिन बाद ही 11 दिसंबर को 20 से 25 फैक्ट्रियों को फिर सील कर दिया गया।
अब धीरे-धीरे सभी फैक्ट्रियों को इस तरह से सील करने की योजना बनाई जा रही है ये आरोप इन उद्यमियों का है। इनका कहना है कि पोलयूशन का वास्ता देकर इन्हें दिल्ली से बाहर बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में लाकर बसा दिया गया जहां इन्हें मजदूर भी नहीं मिलते थे, न ही कोई ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी इंडस्ट्रियल एरिया के अंदर थी। जैसे तैसे यहां इन्होंने अपने उद्यम शुरू किए। यहां अब पोलूशन के नाम पर परेशान किया जा रहा है। आखिरकार उद्योग कहां जाएंगे।
अब इन लोगों ने का कहना है कि यह अगले सप्ताह एलजी हाउस का घेराव करेंगे और आईजी साहब से ही जाकर मिलेंगे क्योंकि दिल्ली में जमीन के मालिक एलजी साहब ही है वे उसका को समाधान निकालें।
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अब ये देखने वाली बात होगी कि कोई समाधान निकल पाता है या नहीं निकल पाता। इतना जरूर है कि दिल्ली में पॉल्यूशन कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहा है और शासन सिर्फ फैक्ट्रियों को ही निशाना बना रहा है। दिल्ली में उड़ने वाली धूल, कंस्ट्रक्शन साइट्स , सरकारी डंपिंग साइटों पर दिन रात उठने वाला धुआं और धूल इन सब की तरफ प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। जब भी कोर्ट से पोलूशन पर सख्त आदेश आता है तो कुछ फैक्ट्रियों को सील करना शुरू कर दिया जाता है और ट्रांसपोर्ट पर भी पोलूशन का कारण ठोक दिया जाता है। ना तो सरकारी डंपिंग साइटों पर ध्यान दिया जाता न ही सड़कों पर उड़ने वाली धूल को कंट्रोल किया जाता। फिलहाल प्रशासन कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए फैक्ट्रियों और दुकानों पर ही अपना चाबुक चलाता है।