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छतरपुर दिल्ली
ब्यूरो रिपोर्ट
(अनिल अत्तरी न्यूज़ नेटवर्क)
देश में रिलीज़ हो रही फिल्मों में कभी किसी धर्म को ठेस तो कभी किसी समुदाय विशेष को ठेस पहुंचाने वाली बातें लगातार सामने आ रही है। उस समाज के लोग भी उस चीज का बार-बार विरोध करते हैं। कहीं यह फिल्म निर्माताओं का पब्लिसिटी का कोई हथकंडा तो नहीं जिसमें समाज का विरोध हो और उस फिल्म का नाम बिना किसी विज्ञापन के पूरे देश में चला जाए। कई बार बिना ऑब्जेक्शन के इस तरह की फिल्म रिलीज हो जाती है और समाज विरोध नहीं कर पाता लेकिन उस समाज के लिए जो ठेस पहुंचाने वाली बात फिल्म में होती है वह कहीं ना कहीं फिल्म इंडस्ट्री और सेंसर बोर्ड के नियमों का उल्लंघन है। सेंसर बोर्ड भी इस तरह नियमों की इस अनदेखी कर देता है या समझ नहीं पाता यह एक गंभीर विचारणीय प्रश्न है।
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फिलहाल नया विवाद एक ऐसी फिल्म पर हुआ है जो करीब दो साल पहले रिलीज हो चुकी है उसके पब्लिसिटी के मुद्दे की वजह के कारण हम अपने पोर्टल में उसका नाम नहीं लिख रहे हैं। इस फिल्म में पाल , बघेल , गडरिया समाज के नाम से जाना जाता है उसके बारे में एक अपमानजनक शब्द कहा गया है इस समाज में पहले ध्यान नहीं दिया। अब इस समाज के लोगों ने देखा कि फिल्म में गडरिया समुदाय को ठेस पहुंचाने वाले शब्द से संबोधित किया गया है। फिल्म में गडरिया के आगे उस शब्द को लगाया है अभी समाज ने फिल्म को देखा तो पता चला । अब गड़रिया समाज राष्ट्रव्यापी विरोध शुरू कर सकता है क्योंकि गडरिया समाज की पूरे भारत की अधिकतर एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मीटिंग दिल्ली के कालकाजी धर्मशाला में हुई। कालकाजी धर्मशाला में इस मुद्दे को आगे तक ले जाने का निर्णय समाज ने लिया है और राजस्थान, दिल्ली एनसीआर और उत्तर प्रदेश में इसका काफी विरोध हो सकता है।
इस समाज के लोग एकजुट हो रहे हैं ये उस डायरेक्टर के खिलाफ कार्रवाई के लिए धरने प्रदर्शन भी करेंगे और माननीय न्यायालय का सहारा भी लेंगे उनका कहना है कि सेंसर बोर्ड पर भी इस मामले में कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि सेंसर बोर्ड ने इतने बड़े समाज को ठेस पहुंचाने वाला शब्द कहते हुए कैसे फिल्म को पास कर दिया।
फिलहाल गड़रिया समाज का ये विरोध काफी बढ़ सकता है और देखने वाली बात होगी कि इस समाज से फिल्म के निर्माता माफी मांगते हैं या नहीं।