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Prayagraj
अगर आध्यात्म के नाम पर यही सब कुछ चलता रहा तो भारत की धरती पर अगले बीस वर्षों में एक स्वस्थ व्यक्ति खोजना मुश्किल हो जाएंगा। यह जानकारी योग दर्शन परमार्थिक ट्रस्ट के संस्थापक योग गुरू स्वामी हर्षानंद जी महाराज ने प्रयागराज स्थित मीडिया सेन्टर पर मीडिया को देते हुएं कहा कि भारत में इस समय पंसारी की दूकान से ज्यादा दवाई की दुकानें खुल चुकी है तथा लगता है सारा देश तेज़ी से विभिन्न व्याधियों के चक्रव्यूह में फंसता चला जा रहा है।
याद रखना यह कार्य कोई विदेशी षडयंत्र का हिस्सा नही है अपितु हम सब बराबर के भागीदार बनकर यह परिस्थितियां निर्मित कर रहे है । हम सब प्रकृति के ताने बाने को नष्ट करने पर अमादा है।
सारी नदियां हमनें गंदे नालों में तब्दील कर दी है यहां तक ही नही अपितु धरती की कोख़ भी ज़हरीली कर दी है
फलस्वरूप अस्सी प्रतिशत से अधिक बीमारियां हमें दूषित पेयजल के कारण गिरफ्त में ले चुकी है । जो कुंभ पर्व कभी प्रायश्चित करने के लिए आयोजित किया जाता था उसे हमने नुमाईश का जरिया बना लिया
हमने कुंभ के नाम पर उज्जैन, नासिक , हरिद्वार तथा प्रयागराज में हजारों पेड़ो की बलि दी है , पहाड़ो को छलनी किया है जिसका खामियाजा हमें तथा हमारी भावी नस्लों को भुगतना ही होगा।
स्वामी जी ने चेताया कि एक पेड़ का कटना हजार पुत्रों की हत्या के समान होता है इसके विपरीत एक पौधे को वृक्ष का रूप धारण करवा देना भी हजार पुत्रों को पालने के समान होता है।
पेड़ पौधों तथा नदियों से हमारा क्या रिश्ता है यह नएं सिरे से परिभाषित करने का समय आ गया है
हमें सीखना तथा समझना होगा कि विज्ञान पदार्थ की समझ पैदा करता है जबकि अध्यात्म अनुभूति करवाता है
इन दोनों के मध्य संतुलन बनाकर ही एक स्वस्थ मानव धरती पर आकार ले सकता है
इस समय” योग संस्कृति भोग की और ” तथा “भोग संस्कृति योग की और ” विपरीत दिशाओं में “अनुलोम-विलोम” कर रही है
यही वह समय है जब चुनौतियों को अवसर में बदलकर सारी दुनिया को भारत की मुट्ठी में कैद किया जा सकता है
बशर्ते हम अपना नज़रिया सीखने लायक बनाएं प्रसंगवश भारतीय समाज में मौजूद वर्ण व्यवस्था (शूद्र,वैश्य,क्षत्रिय तथा ब्राह्मण)मानव शरीर के भीतर की स्थिति है जिसे ठीक से समझकर सम्पूर्ण मानव जाति को खुशहाल बनाया जा सकता है।
1930 के बाद(डाक्टर सी•वी•रमन •रंगों की भाषा के जनक) अभी तक भारत की धरती से दुनिया को खुशहाल बनाने का कोई प्रयास दिखाई नही दिया
यह एक अवसर है कि भारत का साधू समाज इस चुनौती को अवसर में बदलकर भारत के जन जन को खुशहाली के द्वार तक ले जा सकता है
साधू का धर्म ही समाज की सोई हुई चेतना को जाग्रत करना होता है
अगर लाखों करोड़ों नागरिक जो प्रयागराज में आ रहे है इन्हें साधू समाज जल झूठा नही छोड़ने तथा एक एक पौधा लगाने का संकल्प करवाएं तो प्रकृति की बग़िया को गुलज़ार करने का यह सुनहरा अवसर भारत की तकदीर एवं तस्वीर बदल सकता है
भारत एक कृषि प्रधान देश है
जिसकी आत्मा गांव में निवास करती है
कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जल की बड़ी उपयोगिता है
जल की एक एक बूंद को औषधिय शक्ति का खज़ाना बनाकर प्रकट करनें में पेड़ पोधे तथा पहाड़ों की वनस्पतियां जिम्मेदार भूमिका में होते है
अतः हमें इस आध्यात्मिक कुंभ पर्व का बेहतर इस्तेमाल करते हुएं समाज को जागरूक करना चाहिए
एक परिचय :-
” स्वामी हर्षानंद ”
संस्थापक:- योग दर्शन परमार्थिक ट्रस्ट
(भारत सरकार से मान्यता प्राप्त संस्था)
स्वामी हर्षानंद जी महाराज लम्बे समय से बच्चों तथा बंदी भाईयों के साथ साथ देश की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा करने वाली एजेन्सियों के बीच कार्य कर रहे है
स्वामी जी ने बच्चों की आयु वर्ग के हिसाब से चार अलग अलग मॉड्यूल तैयार किएं हुएं है जिनका वह प्रशिक्षण देते है तथा बंदी भाईयों के लिए आपका विशेष मॉड्यूल “अपराध से अध्यात्म की और ” काफी विख्यात है
आपने अभी तक तीन हजार पांच सौ से अधिक देश के अलग अलग प्रान्तों के विद्यालयों में तथा देश की एक सौ बयासी जेलों में (तिहाड़ जेल दिल्ली) पहुंच कर योग शिविर संचालित किएं है
आपने अश्व शक्ति प्रेरित यौगिक क्रिया “गिद्धासनी” के साथ साथ हंसी के चौसठ रंगों की भी खोज की है
सबसे बड़ी बात स्वामी जी कहते है
योग “वन टू वन” है
कोई भी दो व्यक्ति एक जैसी क्रिया करने पर भी एक जैसा परिणाम नहीं पा सकतें
प्रकृति ने हर शरीर की रचना को एक नई मौलिकता के साथ प्रकट किया है
स्वामी जी की दृष्टि में क्या है ” योग “?
शरीर, प्राण तथा विचार के मध्य संतुलन बनाना ही “योग”
स्वामी जी बताते है कि “एंगल,स्टेबिलिटी तथा ब्रीदिंग की प्रकिया को ठीक से समझ कर मानव अपने भीतर की गहराई को नाप सकता है
क्या है गिद्धासनी यौगिक क्रिया?
अश्व शक्ति प्रेरित इस यौगिक क्रिया में “श्वास प्रश्वास” के मध्य ध्वनि उत्पन्न कर संतुलन बनाना सीखना होता है
पहले चरण में प्रश्वास को शक्ति से बाहर फेंकना होता है
दूसरे चरण में श्वास तथा प्रश्वास के मध्य संतुलन बनाना तथा तीसरे चरण में श्वास तथा प्रश्वास के मध्य ध्वनि को लयबद्ध किया जाता है
स्वामी जी के अनुसार दुनिया का यह सबसे कम समय वाला यौगिक कैप्सूल है जिसके बल पर मानव नियमित रूप से मात्र छह मिनट की यौगिक क्रिया के बल पर शरीर , प्राण तथा विचार के मध्य संतुलन बनाकर सरल तरल तथा प्रसन्नता पूर्वक जीवन जी सकता है
स्वामी जी का दावा है कि इस यौगिक क्रिया का संसार के किसी भी यौगिक ग्रन्थ में उल्लेख नही है
साथ ही वह यह भी बताते है कि कपालभाति श्वान से , मयूरासन मयूर से , उष्ट्रासन ऊंट से , मत्स्येन्द्रासन मछली से , भुजंगासन सांप से वग़ैरह वग़ैरह उठाई गई यौगिक क्रिया है #
जब मानव इन क्रियाओं को करते समय अपने भीतर उस जीव की उपस्थिति महसूस करता है तभी योग फलित होता है
भारतीय ऋषियों ने हर जीव की विलक्षण क्षमता को आत्मसात् करने के लिए लम्बे समय तक धैर्य पूर्वक गहन अध्ययन करते हुए यह यौगिक क्रियाएं ईज़ाद की ताकि मानव प्रकृति की बग़िया को गुलज़ार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें !