दिल्ली में पोस्टमार्टम के दौरान होता है शवो का अपमान।
जंग लगे पुराने औजारों और पत्थरो से होता है पोस्टमार्टम
AA News
नई दिल्ली
देश मे सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा किसी से भी छुपी नही है । और साथ ही इन सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने के लिए किस तबके के लोग अपना इलाज़ करवाने आते है । ये भी किसी से छुपा नही है । इनमे केवल गरीब लोग ही इलाज़ करवाने आते है और कोई नही । यदि किसी भी व्यक्ति (अमीर या गरीब ) की किसी दुर्घटना में या इलाज़ के दौरान मौत हो जाये तो उनका पोस्टमार्टम भी इन्ही सरकारी अस्पताल में किया जाता है ।
मृतक लोगों का पोस्टमार्टम करने के लिए अस्पताल में औजार ही नहीं होते । यदि होते भी हैं तो उन में जंग लगा होता है । जिससे पोस्टमार्टम करने में वहां के कर्मियों को काफी परेशानी आती है । ऐसा ही एक मामला उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के बाबू जगजीवन राम अस्पताल का है । यहां पर पोस्टमार्टम के लिए जो बॉडी आती है । उसके पोस्टमार्टम के लिए इस अस्पताल की मोर्चरी में पर्याप्त साधन और संसाधन नहीं है । यह अस्पताल दिल्ली सरकार के अंतर्गत आता है । अस्पताल के एक सीनियर अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि, मैं बार-बार अस्पताल के सीनियर अधिकारियों को पोस्टमार्टम करने के लिए जो भी पर्याप्त संसाधन और साधनों की जरूरत होती है उनकी कमी के बारे में कई बार लिखकर दे चुका हूं ।लेकिन अभी तक हमें पोस्टमार्टम करने के लिए वही पुराने लोहे के और जंग लगे हुए औजारों का प्रयोग करना पड़ता है । जिसमें हथोड़ा, छीनी, चापड़, छुरा और बड़े-बड़े पत्थरों का भी प्रयोग करना पड़ता है ।
मोर्चरी में डेड बॉडी को रखने के लिए स्ट्रेचर की भी भारी कमी है । डेड बॉडी का पोस्टमार्टम करने के बाद शरीर को सिलने के लिए सुई और धागे भी नही है ।
बॉडी को पोस्टमार्टम के बाद पैक करने के लिए कफन और डेड बॉडी बॉक्स की भी काफी कमी है । पोस्टमार्टम के बाद जो सैंपल जांच के लिए लिया जाता है, उसको भी सील करने के लिए वुडन बॉक्स की कमी है और मोर्चरी में पोस्टमार्टम करने के लिए डॉक्टर और लोअर स्टाफ की भारी कमी के संदर्भ में कई बार लिखकर के अस्पताल के सीनियर अधिकारियों को दिया जा चुका है । लेकिन अब तक उनकी तरफ से एक बार भी इन सारी कमियों, संसाधन को पूरा करने की कोशिश नहीं की गई है । यह कमियां अगर देश के किसी अन्य राज्यों के दूर-दराज के अस्पतालों में होती तो समझा जा सकता था । लेकिन अगर इस तरह की कमियां देश की राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पताल में ही पाई जाती हैं तो, उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा । अस्पताल प्रसासन या दिल्ली का स्वास्थ मंत्रालय । ऐसा तो नहीं लगता कि इसकी शिकायत अस्पताल के सीनियर अधिकारियों को मिली हो, वह ऊपर के अधिकारियों तक नही पहुंच पाई हो । इस पर दिल्ली सरकार या अस्पताल के सीनियर अधिकारियों की जवाबदेही तो बनती है । यदि ऐसी भयंकर लापरवाही और कमियां दिल्ली के किसी भी अस्पताल में पाई जाती है तो यह अस्पताल प्रशासन और उस राज्य के प्रबंधन पर कई सवाल खड़े होते है । जबकि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री समय-समय पर इन सरकारी अस्पतालों का दौरा करते हैं । क्या उनको कभी भी इस तरह की भारी कमियों से अवगत नहीं कराया गया होगा । क्या दिल्ली सरकार भी खुद इस तरह की कमियों को पूरा करने में असक्षम है ।