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Tatesar Jonti Delhi
Report : Anil Kumar Attri
दिल्ली के जोंती-टटेसर गांव में बना सांगोपांग वेद विद्यापीठ आर्ष गुरुकुल आज भी हमारी वेद शिक्षा और संस्कृति को बचाए हुए हैं। 1940 में सांगोपांग वेद विद्यापीठ आर्ष गुरुकुल की स्थापना हुई थी और यह लाहौर आर्य समाज हेड क्वार्टर से जुड़ा हुआ था । शिक्षार्थियों को यहां पर चारों वेद की शिक्षा दी जाती है। हर वेद में 12 स्टूडेंट्स पढ़ते हैं और एक वेद की शिक्षा पूरी करने में उसे 6 साल लगते हैं। छठी कक्षा में यहां शिक्षार्थियों को दाखिला दिया जाता है और बारहवीं की परीक्षा पास कर यहां से निकलते हैं। उज्जैन में HRD मंत्रालय से संबंध गुरुकुल संस्था से ये आर्ष गुरुकुल जुड़ा हुआ है ।
इससे 12वीं करने के बाद शिक्षार्थी आगे किसी भी विश्वविद्यालय में दाखिला ले सकते हैं और इसका सर्टिफिकेट CBSE बोर्ड के समकक्ष सब जगह मान्य होता है। इस गुरुकुल से पास होकर छात्रों ने दिल्ली विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और भी कई जगह एडमिशन लिया है और पढ़ रहे हैं । साथ ही इस गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों की मांग वेद आचार्यों के रूप में पूरे देश में पहले से ही होती है क्योंकि यह गुरुकुल 50 छात्रों को ही दाखिला देता है।

Arsh Gurukul Tatesar-Jonti Delhi
2020 में यह दाखिला अभी आने वाले अप्रैल के महीने से शुरू होगा इसमें छात्र महाराष्ट्र से लेकर उत्तरी भारत के कई राज्यों से पढ़ते हैं। खास बात यह है कि वेद की शिक्षा देने वाले इस गुरुकुल में कोई जातिगत भेदभाव नहीं है किसी भी जाति संप्रदाय से शिक्षार्थी दाखिला ले सकता है ।
वेदों के साथ-साथ आधुनिक समाज में शिक्षार्थी का स्थान बना रहे उसके लिए उन्हें विज्ञान और गणित की भी शिक्षा दी जाती है। साथ ही मुख्य ध्यान वेद, व्याकरण और संस्कृत पर रहते हैं।
उपनयन संस्कार के बाद यहां विधिवत रूप से शिक्षार्थी की शिक्षा शुरू की जाती है।
पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ यहां शारीरिक शिक्षा भी अनिवार्य है जिसमें सुबह 4:15 बजे से उठकर नित्य कार्यों से निवृत्त होकर योग और खेल को करना अनिवार्य होता है। यहां शिक्षार्थियों का रहना खाना-पीना सब गुरुकुल की तरफ से फ्री किया जाता है।
गुरुकुल में एक गौशाला भी बनाई गई है जिसका दूध और घी इन्हीं बच्चों में बांटा जाता है।
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यहां 50 शिक्षार्थियों को शिक्षा दी जाती है लेकिन देश के लिहाज से वह पर्याप्त नहीं है क्योंकि जरूरत है इस तरह के गुरुकुल हर जिले में तो कम से कम एक जरूर हो ताकि प्राचीन शिक्षा पद्धति को बचाया जा सके । विज्ञान आज जिन बातों अब मानने लगा है वे बाते हमारे वेदों में हजारो साल पहले लिखी गई है ।
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